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Showing posts from June, 2019

रक्षाबंधन

यह धागों का त्योहार अजीब है, भाई बहन का प्यार अजीब है, दुनिया जमाना जिसकी दीवानी, फिर कहने का अधिकार अजीब है, भाई बहन का प्यार अजीब है, यह धागों का त्यौहार अजीब है। छोटे भाई बहन जब थे तो, खुशियां मिलती थी अपार, देश से  जुड़ती है त्यौहार जब सैनिक बांधते हैं रक्षा सूत्र खाते कसम संदेश सेवा की, तब लगता यह त्यौहार गजब है, भाई बहन का प्यार अजब है यह धागों का त्यौहार अजब है।                           प्रेम प्रकाश पाण्डेय                        

सागर में नाव

ज़िंदगी है अति कठिन, संघर्ष हमारा जारी है, ताल तलैया तैर चुका हूं, पतवार चलाना बाकी है, सागर मे अभी नाव चलाना बाकी है। हिम्मत तो हमने भी की है, तूफानों से लड़ गुजरने की, किस्ती हमारी बन चुकी है, पतवार बनाना बाकी है, सागर मे अभी नाव चलाना बाकी है। छोटी कद हैं, छोटी है अभिलाषा, रण में जब शोर मच चुकी है, तलवार चलाना बाकी है, सागर में अभी नाव चलाना बाकी है। हम नहीं चाहते युद्ध मगर, है कमान  हमारे हाथों में, जब रणभेरी बज चुका है, निशान लगाना बाकी है, सागर मे अभी नाव चलाना बाकी है।                            प्रेम प्रकाश पाण्डेय                             

थोड़ा शर्म करो

मनुष्य हो थोड़ा शर्म करो, कुछ करना है, तो अच्छा कर्म करो, यूं ही न सताओ निर्देशों को, उन्हें भी बनाया ईश्वर ने, उन पर भी थोड़ा मर्म करो मनुष्य हो थोड़ा शर्म करो। कंश रक्तबीज रावण थे, अब किताबों में रह गए, एक दिन ऐसा आएगा, नाम निशान मिट जाएगा, मिली है जिंदगी अच्छी कर्म करो, मनुष्य हो तो थोड़ा शर्म करो। हमने अक्सर देखा है, लोग चलते हैं आंखें बंद कर, निर्दोषों को अक्सर कुचलते हैं, ऐसी जिंदगी से क्या हस्र करो मनुष्य हो तो थोड़ा शर्म करो। आज के कुछ दबंग हैं ऐसे, जिंदगी से नफरत है ऐसे, करते अत्याचार है ऐसे, ऐसे लोगों से क्या मर्म करे, मनुष्य है तो कुछ शर्म करो, सबकी दिल लकड़ी का है, भला बुरा नहीं सोचता है, बुरे तो बुरा बन बैठे हैं, अच्छों को क्या कोसना है,  इंसानियत जिसकी मर चुकी है ऐसे मनुष्य को क्या  कहे, मनुष्य हो मनुष्यता  समझा करो, मनुष्य हो तो थोड़ा शर्म करो।।                            प्रेम प्रकाश पाण्डेय                 ...

एक साली है

मेरी एक साली है, मस्त है मतवाली है, सुंदर है सुशील है, कोमल नहीं कठोर है, घर की सुंदरता में चांद तारा, पर रात उसके बिना काली है, मेरी एक साली है  मस्त है मतवाली है। सुंदरता में फिल्म क्षेत्र भी, आवाज की कायल कोयल भी, चाल के आगे हिरण न टिके, व्यवहार की रसभरी बारिश है, मेरी एक साली है,  मस्त है मतवाली है। लड़ाई झगड़ा हमसे करती, सेवा में ना ही कम रहती, ख्याल हमारी वो करती है, जैसे फूल एवं कांटों सा, एक बात है बहुत खास है, लगती जैसी घरवाली है, मेरी एक साली है , मस्त है मतवाली है। घर के हर कोने में, सिर्फ वो ही नजर आती है, साफ सफाई घर की, संगमरमर सा बनाती है, व्यंजन की बात मत पूछो, लजीज भोजन बनाती हैं, मेरी एक साली है, मस्त है मतवाली है। सुबह से लेकर शाम तक, याद हमेशा आती है, उसकी याद में सब रिश्ता, सब काम नींद भी नहीं आती है, मेरी एक साली है मस्त है मतवाली है।

झाड़ू

झाड़ू आदर्श है मानव पर, यह जहां से चलती है, स्वच्छता लिए चलती है, गंदगी नहीं करती है, फिर भी सफाई करती है, झाड़ू आदर्श है मानव पर। मनुष्य की तुलना झाड़ू से की, तो ऐसा हमने पाया है, मनुष्य है कामचोर पर झाड़ू है कर्मठ, मनुष्य है लालची और झाड़ू है निस्वार्थी, मनुष्य है उदंड पर झाड़ू है विनम्र, मनुष्य फैलाते गंदगी, झाड़ू करते हैं सफाई। ऐसा उदाहरण आनेको है, मनुष्य के चरितार्थ पर, पर झाड़ू से सीखो ये मानव,, स्वच्छता, सहयोगता, विनम्रता, त्याग के भाव को, झाड़ू आदर्श है मानव पर। एक ऐसी व्यथा सुनाऊंगा, सुनकर हर मनुष्य चक्करायेगा, गुस्से से लाल हो जाएगा, आंखें भी दिखलायेगा फिर सुन लो सत्य है बाड़ी ये, गंदगी के हो उत्पादक, भावना तुम्हारी है गंदी, फैलाते हो सर्वत्र गंदगी, कविता का सारांश है ये, झाड़ू से सीखो, कर लो सफाई, कर लो सफाई, कर लो सफाई झाड़ू आदर्श है मानव पर।।