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थोड़ा शर्म करो

मनुष्य हो थोड़ा शर्म करो,
कुछ करना है, तो अच्छा कर्म करो,
यूं ही न सताओ निर्देशों को,
उन्हें भी बनाया ईश्वर ने,
उन पर भी थोड़ा मर्म करो
मनुष्य हो थोड़ा शर्म करो।

कंश रक्तबीज रावण थे,
अब किताबों में रह गए,
एक दिन ऐसा आएगा,
नाम निशान मिट जाएगा,
मिली है जिंदगी अच्छी कर्म करो,
मनुष्य हो तो थोड़ा शर्म करो।

हमने अक्सर देखा है,
लोग चलते हैं आंखें बंद कर,
निर्दोषों को अक्सर कुचलते हैं,
ऐसी जिंदगी से क्या हस्र करो
मनुष्य हो तो थोड़ा शर्म करो।

आज के कुछ दबंग हैं ऐसे,
जिंदगी से नफरत है ऐसे,
करते अत्याचार है ऐसे,
ऐसे लोगों से क्या मर्म करे,
मनुष्य है तो कुछ शर्म करो,

सबकी दिल लकड़ी का है,
भला बुरा नहीं सोचता है,
बुरे तो बुरा बन बैठे हैं,
अच्छों को क्या कोसना है,
 इंसानियत जिसकी मर चुकी है
ऐसे मनुष्य को क्या  कहे,
मनुष्य हो मनुष्यता  समझा करो,
मनुष्य हो तो थोड़ा शर्म करो।।

                           प्रेम प्रकाश पाण्डेय
                            








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