जब तुतली बोली बोल रहे थे
मुल-मुल आंखें खोल रहे थे,
पलट करवट बदल रहे थे,
कभी गिरते, कभी पड़ते चल रहे थे,
लड़ते थे कि मेरी मां हैं,
कहते थे कि मेरी मां है,
मां पर अपना हक जमाते,
मां पर अपना हक जमाते,
वो दिन कहा, तुम भुल गए,
उंगली पकड़ना भुल गए,
चलकर थकना भुल गए,
वो ग्लास की पानी भुल गए,
वो दुध की कटोरी भुल गए,
वो दिन कहा तुम भुल गए।
याद करो चटपटी वो रोटी,
सर पे चमकती पीला टोपी,
चमकती उस पोसाको की,
स्कूल जाते उस अध्येताओं की,
शौक ठाट उस हीरो की।
चलो अब कुछ नया बताते,
बाबु की अब शादी करवाते,
तिलक विवाह मां प्यासी रही थी,
सुंदर बहू घर पाने की,
जिंदगी में खुशियां लाने की,
अब बहू रानी घर आई,
56 भोग मां खाना बनाई ,
बहु को अपनी हाथों पर रखती,
दिन रात खुशीओ में रहती,
नियति तुमने यह क्या बनाया,
सुनो कहानी अब नया आया।
अब कुछ कहने का मन है,
केवल खाना बहुत ही कम है,
कपड़ा क्या तेरा बाप धोयेगा,
बच्चें की मालिश कौन करेगा,
देख रहा कुछ अनबन बोली,
अब तो होगा खून की होली।
हल्ला सुन सुरज उठा है,
बादलों की पहाड़ टुटा है,
गंगा की धारा बह गई,
जब बहू साथ,
बेटे की नियत मर गई।
मां तुम केवल हल्ला करती है,
दिन रात सोई रहती हो,
घर में कौन पोंछा मरेगा,
बर्तन हांडी साफ कौन करेगा,
मेरी पत्नी फुल सी कोमल,
बस होने दें अपनों से ओझल,
जब भाग्य की रेखा मिट जाते,
पुत्र कुपुत्र ऐसे हो जाते,
गंगा की धारा बढ़ जाती,
मां की जब वो दिन याद आती,
चलो समुद्र की लहरे मिटाते हैं,
दुष्टों को मजा चखाते है,
अब नया अभियान चलाते,
सोये शेर को जगाते,
हर मां को मां बताते,
कुपुत्रो के खिलाफ आवाज उठाते,
मां तो सबकी मां होती है,
दे विद्रोह की नारा हम सब,
करो समाजिक बहिष्कार,
पानी खाना उस नालायक की,
सड़क गली उस आस्तिन की,
बंद करो अब उसकी पानी,
जो करता मां की थाली की निगरानी।
प्रेम प्रकाश पाण्डेय
वो दुध की कटोरी भुल गए,
वो दिन कहा तुम भुल गए।
याद करो चटपटी वो रोटी,
सर पे चमकती पीला टोपी,
चमकती उस पोसाको की,
स्कूल जाते उस अध्येताओं की,
शौक ठाट उस हीरो की।
चलो अब कुछ नया बताते,
बाबु की अब शादी करवाते,
तिलक विवाह मां प्यासी रही थी,
सुंदर बहू घर पाने की,
जिंदगी में खुशियां लाने की,
अब बहू रानी घर आई,
56 भोग मां खाना बनाई ,
बहु को अपनी हाथों पर रखती,
दिन रात खुशीओ में रहती,
नियति तुमने यह क्या बनाया,
सुनो कहानी अब नया आया।
अब कुछ कहने का मन है,
केवल खाना बहुत ही कम है,
कपड़ा क्या तेरा बाप धोयेगा,
बच्चें की मालिश कौन करेगा,
देख रहा कुछ अनबन बोली,
अब तो होगा खून की होली।
हल्ला सुन सुरज उठा है,
बादलों की पहाड़ टुटा है,
गंगा की धारा बह गई,
जब बहू साथ,
बेटे की नियत मर गई।
मां तुम केवल हल्ला करती है,
दिन रात सोई रहती हो,
घर में कौन पोंछा मरेगा,
बर्तन हांडी साफ कौन करेगा,
मेरी पत्नी फुल सी कोमल,
बस होने दें अपनों से ओझल,
जब भाग्य की रेखा मिट जाते,
पुत्र कुपुत्र ऐसे हो जाते,
गंगा की धारा बढ़ जाती,
मां की जब वो दिन याद आती,
चलो समुद्र की लहरे मिटाते हैं,
दुष्टों को मजा चखाते है,
अब नया अभियान चलाते,
सोये शेर को जगाते,
हर मां को मां बताते,
कुपुत्रो के खिलाफ आवाज उठाते,
मां तो सबकी मां होती है,
दे विद्रोह की नारा हम सब,
करो समाजिक बहिष्कार,
पानी खाना उस नालायक की,
सड़क गली उस आस्तिन की,
बंद करो अब उसकी पानी,
जो करता मां की थाली की निगरानी।
प्रेम प्रकाश पाण्डेय
Very nice pande ji
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