Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2021

जब घर से निकले

 जब घर से निकले, खुली हवाओं से मिला, सुकून मिला, स्वतंत्रता मिली, परंतु, जब  घर से निकले, आराम नहीं मिला।। याद आती है हरदम, खाट पर मिलती भोजन, कहने पर ही पानी मिलती , थे सब अपने , अपने साथ  जब घर से निकले, आराम नहीं मिला, घर पर बंदिशों से मुक्ति मिली अलीशान होटल ,अलीशान मंजिल मिली, ताजमहल, लाल किला,  कभी कुतुबमीनार का दीदार मिला। वह कुछ ना मिला जो घर पर मिला।  जब हम घर से निकले , आराम नहीं मिला। था जो पैसे पास में, सूखी रोटी चना चबेना हाथ में, वह सब था मिला , परंतु घर का साथ ना मिला, जब हम घर से निकले, आराम नहीं मिला।।                          प्रेम प्रकाश पाण्डेय