जब घर से निकले, खुली हवाओं से मिला, सुकून मिला, स्वतंत्रता मिली, परंतु, जब घर से निकले, आराम नहीं मिला।। याद आती है हरदम, खाट पर मिलती भोजन, कहने पर ही पानी मिलती , थे सब अपने , अपने साथ जब घर से निकले, आराम नहीं मिला, घर पर बंदिशों से मुक्ति मिली अलीशान होटल ,अलीशान मंजिल मिली, ताजमहल, लाल किला, कभी कुतुबमीनार का दीदार मिला। वह कुछ ना मिला जो घर पर मिला। जब हम घर से निकले , आराम नहीं मिला। था जो पैसे पास में, सूखी रोटी चना चबेना हाथ में, वह सब था मिला , परंतु घर का साथ ना मिला, जब हम घर से निकले, आराम नहीं मिला।। प्रेम प्रकाश पाण्डेय
देश भक्ति से ओत प्रोत कविताओं का संग्रह जोकि मेरे द्वारा लिखीं गई है आपको प्रतिदिन एक नई कविता इस ब्लॉग्स में मिलेगी। ✍️ प्रेम प्रकाश पाण्डेय