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Showing posts from May, 2019

अजनबी

हिम्मत तो दिखलाओ, थोड़ा आगे आओ, हम भी राही हैं, तुम भी राही हो, नजर तो मिलाओ, थोड़ा आगे आओ। है जिंदगी खुशी की, खुशी को दिखलाओ, थोड़ा आगे आओ, तुम भी चल रहे हो, हम भी चल रहे हैं, नजर  न झुकाओ, थोड़ा आगे आओ। है जिंदगी खूबसूरत तेरी , खूबसूरती को दिखलाओ, थोड़ा आगे आओ, चांद सा हो चमकती, चांदनी को न छुपाओ, थोड़ा आगे आओ। एक साथ है चल रहे अनजान बनकर रह रहे,  बातें तो कर जाओ, थोड़ा आगे आओ। है चंचल मन तेरा, है चंचल मन मेरा, खामोशी को तोड़ जाओ, थोड़ा आगे आओ। चल रहे राही बनकर, पथ पर पथिक हम दोनों, अपनी पता तो बताओ थोड़ा आगे आओ, रास्ते समाप्त हो रही है, समय बदल रही है, समय को बचाओ, थोड़ा आगे आओ। जीवन का लक्ष्य है एक, आपका भी  है एक, मेरा भी है एक, अपने लक्ष्य को बताओ, थोड़ा आगे आओ।  कैसे समय बीत रही, कहीं अजनबी न बन जाओ, थोड़ा आगे आओ, थोड़ा आगे आओ।                    प्रेम प्रकाश पाण्डेय                       ...

उधम सिंह(क्रांति का प्रतीक)

 जालियांवाला बाग से निकले क्रांति कारी, जिनका  शुभ नाम  उधम सिंह, जिसने जनरल डायर को थी गोली मारी, हमें गर्व है आप पर उधम, आपने निर्दोषों का बदला ले डाली। था षडयंत्र सुनियोजित ढंग से, जालियांवाला बाग की अमर कहानी, धार्मिक मेला लगा बैसाखी का, 13 अप्रैल 1919 की है कहानी। जीवन वृत्त है अति संघर्षपूर्ण, जिला संगरूर पंजाब की धरती, जन्म जहां लिए उधम सिंह, 26 दिसंबर 1899, सुनाम गांव कंबोज परिवार था। कम उम्र में मां पिता को खोया, तब भाई बना सहारा, शेर सिंह मुक्ता सिंह थे दो भाई, लिए अनाथ आश्रम का सहारा। नाम बदलकर अनाथ आश्रम में, उधम सिंह साधू सिंह कर डालें, कैसे जीवन कट रही अनाथो की, देखो प्रभु की अद्भुत माया। सुख चैन से रह रहे थे, दोनों भाई का दिन कट रहे थे, परंतु यह, नियति को रास ना आया, अचानक बड़े भाई को भी काल ने खाया। थे वो प्रत्यक्षदर्शी जालिया के, परंतु थे वो बेसहारा, ठान लिया उसने मन में, चला दी क्रांति की धारा। अपने जीवन को मिशन बनाया, दिन-रात तड़प रहा बेसहारा, डायर का चेहरा भूल न पाया, देखो कैसे तड़प रहा हैं, जैसे नाग नागिन खो आ...

छुपी जवानी

तुमको क्या पता बारिश हो रही है, भारी धूप पर जवानी बादल की, फिर क्यों न समझे तुम सो रही है, तुमको क्या पता बारिश हो रही है। जो तुम छुप कर बैठी हो, चमकते चांद जमी पर, चांदनी ओढ़ कर बैठी हो, तुमको क्या पता बारिश हो रही है। भरी यौवन की दहलीज खो रही हो, बाहरी दुनिया से दूर होकर, तुम जो छुप कर बैठे हो, तुमको क्या पता बारिश हो रही है। सूरज देख तुमको ढल जाते हैं, चांद अपनी चांदनी मे छुप जाते हैं, शायद यही सोच कर, तुम जो छुप कर बैठी हो, तुमको क्या पता बारिश हो रही है। तुमको शायद है गरूर, अपने चमकती सुंदरता पर, फिर देखो चांद को ध्यान से, बादलों के बीच जो छुप बैठे हैं तुमको क्या पता बारिश हो रही है।।                                प्रेम प्रकाश पाण्डेय                                  

इंसान

इंसान तेरा रूप अनेको है, मैं रंग रूप सुंदरता की बात नहीं करता, अपनी जीवन की शुरुआत नहीं करता, परंतु ये इंसान तुझे देख कर, एक बात जरूर कहता हूं, ये इंसान तेरा रूप अनेकों है। क्षण क्षण में रंग बदलते, जिंदगी का ढंग बदलते, पल पल में यह , अपने जीवन को कैसे बदलते , बातें मीठी कड़वी है पर, इसके अंदर का तंत्र बदलते, इंसान हर मोड़ पर कैसे बदलते। जब इंसान से बातें की, तब मनोभाव को जाना है, कैसे चेहरा बदलती है, कैसा मन बदलता है, बाहर की दिखावटी को, अंदर तक पहुंचाना है, भाति  भांति के इंसान को, भली भांति से जाना है , अति मलीन मनोभाव को, अच्छी तरह से जाना है, नफरत भरी इंसानी भाव को, अच्छी तरह से जाना है, ऐसी हरकत देखकर, मैं चुप नहीं रह सकता हूं, तेरे अनेक चेहरों पर, कुछ लिख तो सकता हूं, ये इंसान तेरा रूप अनेकों है।।                         प्रेम प्रकाश पाण्डेय                          

भारत माता की जय

हम हैं देश के जवान, हम लड़ते हैं डरते नहीं, देश के गद्दारों से, देश के नमक हरामो से, हम लड़ते हैं ,हम लड़ते  हैं, देश के गद्दारों से, हम हैं देश के जवान, भारत माता की जय। जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ भुज से पूर्वोत्तर तक, फैली हमारी शाखा है, एक एक प्रतिक्रियाओं पर, पैनी नजर हमारी है, हर क्षेत्र में देख लो, हम कहीं ना पीछे हैं, हम हैं देश के जवान, भारत माता की जय। आतंकवादी, नक्सलवादी, अब डर से कापे, पत्थरबाज तो डर से भागे, देश की सुरक्षा सीमा की, अब चिंता हमारी हैं हम हैं देश के जवान, भारत माता की जय। प्राकृतिक आपदा ,बाढ़, तूफान, धार्मिक स्थल ,सार्वजनिक स्थल, वीआईपी, वीवीआईपी, देश के सारे नेता की सुरक्षा, इनके अलावा कई अन्य ड्यूटीयो की जिम्मेदारी हमारी है, हम हैं देश के जवान, भारत माता की जय। सर्व धर्म का मंत्र हमारा, कार्य में हम ना पीछे हैं, देश सेवा है धर्म हमारी, इसमें  तो हम अनूठे हैं, हम हैं देश के जवान, भारत माता की जय।।                   प्रेम प्रकाश पाण्डेय     ...

खौलता खून

खौलता है खून देखकर, वह खड़ा है चट्टान सा, पर्वत और पहाड़ सा, टिकी हुई है निगाह दुश्मन पर, ना डर है ना भय है, हिम्मत है अंबर सा, पर, खौलता है खून देखकर। भारत माता का प्रहरी, बाहरी या आंतरिक, हर जगह है तत्पर, रात को भी दिन समझते , मौत को जीवन समझते, खाते हैं सूखी रोटी पर, उसमें भी आनंद समझते, पर खौलता है खून देखकर। देश के हम प्रहरी हैं, सीना तान हम खड़े हैं, हर संभावनाओं से लड़ने को, हम तैयार हैं, इसमें भी हम ताना सुनते, देश के गद्दारों का, बाहरी तो मत पूछो, अंदर के नमक हराम का, पर खौलता है खून देखकर। यह सब जानते हैं, फौज के कठिन कर्तव्यों को, जीवन त्याग की तपस्या को, मौसम की हर समस्या को, यह हम सब सहते हैं, फिर भी देश सेवा करते हैं, पर खौलता है खून देखकर। देश के सैनिक होते शहीद पर, इज्जत नहीं देते हो तुम, अपशब्द होती है बाड़ी तुम्हारी, कायरता से भरा हुआ, कहते हो तुम सैनिक को, मरने के लिए बने हुए, थोड़ी हिम्मत दिखलाओ तुम, देश की सैनिक बन जाओ तुम, सैनिक जो करते हैं कर जाओ तुम, पर तेरे बस की बात नहीं, शत् प्रतिशत हमारी दावा है, तेरी इस कायरता...

मेरा देश

जहां झर झर करती,          झरनों से गिरकर पानी, हरे भरे बागों में ,           कलरव करती कोयल रानी, गीतों की तान सुन कर,           जहां  झुमते सब  प्राणी, खुशी से सब रहते जहां,            वह है देश अपनी निराली, एक घाट पर पानी पीते,             बाघ हिरण ,बाज गौरैया रानी, उस देश के वासी है,              रहते एक समान जहा सब प्राणी, भारत जिसका नाम हैं,               जो विश्व पटल पर , स्वर्णिम इतिहास लिख डाली,                   भारत माता की जय।।                      प्रेम प्रकाश पाण्डेय                        

कह दो

कह दो उनसे की,             मिलना मुझसे छोड़ दें, कह दो उनसे की,             बातें करना छोड़ दें, कह दो उनसे की,              देखना मुझको छोड़ दे, कह दो उनसे की,              मेरे घर आना छोड़ दे, कह दो उनसे की,              मेरे साथ बैठना छोड़ दे, कह दो उनसे की,               मेरे साथ चलना छोड़ दे, कह दो उनसे की,               मेरी बातें करना छोड़ दे, कह दो उनसे की,                मेरे गांव आना छोड़ दे, कह दो उनसे की,                नफरत फैलाना छोड़ दे, कह दो उनसे की,                आग लगाना छोड़ दे, कह दो उनसे की,                 गंदी हवा फैलाना छोड़ दे, क्यों कि,   ...

मातृ दिवस

पिछले साल की भांति ही,                इस साल मातृ दिवस आया है, देख भावना लोगों का,                 दिल हरगिज घबराया है, सोचा खुशी मै भी मनाऊ,                  पर दिल को नहीं यह भाया है, भर जाती है आंखें मेरी,                  जब याद आती है मां तेरी, मैं भी तो हूं मां बेटा तेरा,                  देख रहा आंखों दुख तेरा, सोच कर तेरी दुखी समय को,                  मां इच्छा नहीं है कुछ और कहने की मातृ दिवस पर सब खुशी मनाते                  डीपी पर है फोटो लगाते, कैसे-कैसे नाटक कर जाते,                  अपनी भावना को दिखलाते, जब मां रोये घुट-घुट कर के,                  तब खाना खाकर सो ...

हम क्यो जले

हम क्यों जले आप से, जब हमको भी दो हाथे हैं, जब हमको भी दो पैरे हैं, जब दिया प्रभु ने सुंदर रूप दो आंख दिए, दो कान दिए, दिया कंचन सी काया है, फिर हम क्यों जले आपसे। कर्म जैसा हम करेंगे, फल निश्चित वैसा ही होगा, हम क्यों जले किसी से, जब है हमारा उच्च विचार, जब है मेरा विनम्र स्वभाव, जग चाहे हमको सर्वत्र, फिर हम क्यों जले , आपको देखकर, माना कुछ त्रुटि हो सकती है, पर यह नहीं है स्वभाव, कर्म हमारा नारा है, शत प्रतिशत कार्य करने का, हमने जब से ठाना है, ऐसे  हम चलते रहेंगे, मंजिलों तक पहुंचते रहेंगे, तुम शुद्ध करो अपनी विचार हम क्यों जले आपसे अब की बार, पर अक्सर ऐसा होता है, हम काम करें अविराम, पर यह तो दिखता नहीं, बोलते हैं अनाप-शनाप, क्योंकि फुर्सत है इनके पास, कौन क्या कर रहा देखने का, ऐसा मेरा मनोभावों नहीं, हम क्यो जले आपसे,  यह मेरा संस्कार नहीं।।                      प्रेम प्रकाश पाण्डेय                      94633 94375

घर में खुशहाली (हास्य व्यंग)

घर में अगर खुशहाली चाहते , तो हां में हां मिलाओ जी, पत्नी जो कहती है, वही कहा दोहरावो जी, घर में अगर खुशहाली चाहते, तो हां में हां मिलाओ जी,। इनकी इच्छाओं के आगे, तुम अपनी न कह जाओ जी, ये जो कहती है, वही कहा  दोहरावो जी घर में अगर खुशहाली चाहते, तो हां में हां मिलाओ जी, समय समय पर इनको, उनके मायके भी ले जाओ जी, अपने घर की त्याग करो, इनके घर रह जाओ जी, हो सके तो और मात्रा, उसी में मिलाओ जी, घर में अगर खुशहाली चाहतें, तो हां में हां मिलाओ जी। घर को छोड़ो ,गांव को छोड़ो, भाई बहन छोड़ जाओ जी, जब पत्नी कहती है तो मां बाप भी छोड़ जाओ जी, समय-समय  रसोई जा कर, खाना खुद बनाओ जी, फिर भी अगर रहा ना जाए, फिर जाकर पैर दबाओ जी, पत्नी जो कहती है वही कहा दोहरावो जी, घर में अगर खुशहाली चाहते तो हां में हां मिलाओ जी।।                                प्रेम प्रकाश पाण्डेय                     ...

ये बादल

ये बादल तुम यह क्या किया, तुम बरसे हो घाटी में, केसर के सुंदर माटी में, पर थोड़ा  करते इंतजार, कि करते सैनिक अपना काम, फिर होता ना दुबारा युद्ध विराम, आतंक को जड़ से मिटाना था, छठी का याद दिलाना था, पर तेरे कारण यह रुक गया, ये बादल तूने यह क्या किया। बरसना था तो बरसते तुम, थोड़ा सबर कर लेते तुम, सहयोग थोड़ा कर देते तुम, सैनिक के अरमानों का, साथ जरा दे देते तुम, तुम समझो मेरा मनोभाव, पर ते चलते हुआ पुनः युद्ध विराम, ये बादल तूने यह क्या किया। देश में है कुछ ऐसे गद्दार, जो मांगते हैं सैनिक से प्रमाण, जो तुम अभी ना आते, हम अपने कार्य में सफल हो जाते, देते कुछ ऐसा प्रमाण, ऑल आउट को सफल बनाना था, पर तेरे चलते रुका सैन्य अभियान, ये बादल तूने यह क्या किया। जो तू एक मास पीछे आ जाते, सैनिक का दर्द समझ जाते, फायदा युद्ध विराम के पाते, टाइगर सा सैनिक ना खो पाते, बोलने वाला कलम न जाते, पर तू भी साथ ना आए हो, दुश्मन से हाथ मिलाए हो, ये बादल,ये बादल, सैनिक से धोखा, सैनिक से धोखा, ये बादल तूने यह क्या किया।।।             ...

अटल बिहारी बाजपेई

मेरे देश रत्न का पता नहीं, क्यों देश छोड़कर चले गए, हम रिड़ी हैं सब देशवासी, है बड़ा उपकार तेरा, अतुलनीय अद्भुत, देश में है योगदान तेरा, मेरे देश रतन का पता नहीं,  क्यों देश छोड़ कर चले गए, वाणी पुत्र आज से क्यों, कलम पर पूर्ण विराम किया, शब्द सुन स्तब्ध देश है, ऐसे क्यों इंकार किया, शब्द पुत्र अपने शब्दों पर, आज ही क्यों पूर्ण विराम दिया, देशरत्न का पता नहीं, क्यों देश छोड़कर चले गए, राजनीति की शीर्ष को क्यो, आप अधूरा छोड़ गए, देश कर रही है अब तो, गर्व तुम्हारे काम पर, मेरे देशरत्न का पता नहीं, क्यों देश छोड़कर चले गए।।                            प्रेम प्रकाश पाण्डेय                             94693 94375